योग से शरीर में होने वाले फायदे :- हम को अपने शरीर को सेहतमंद बनाये रखने के लिए नियमित रूप से योगासन करना चाहिए। जिससे हमारा शरीर हमेशा एक्टिव रहे। योगासन शरीर में उर्जा के स्तर को बढ़ाव देने के लिए साथ मन को शांत करने का काम करता है। योग से तन मन और आत्मा को निर्मल स्वास्थ किया जा सकता है। अगर हम अपने दिनचर्या में योगासन को भी समिल करले तो योग से शरीर के लिए बहुत बीमारी से छुटकारा मिल सकता है योग से हम केसे फायदा उठा सकते है योग क्यों जरुरी है योग को हम पूरी विस्तार से कैसे समझे
योग से शरीर में होने वाले फायदे
योग क्या है क्यों जरुरी है
योग क्या है।
- योग का इतिहास के बारे में जाने ।
- योग के प्रकार योग कितने प्रकार के।
- योग के लाभ योग करने से क्या लाभ हो सकता
- योग के नियम और पालन।
- योग की शुरुआत के लिए टिप्स और कैसे करे
- योग के दौरान सावधानियां कैसे बरते।
योग क्या है हम आपको समझते है।
योग ठीक तरह से जीने का एक विज्ञान है इस लिए इसे दैनिक जीवन में शामिल किया है और यह हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक, आत्मिक आध्यात्मिक, व आदि । और व सभी ठीक पहलुओं में काम करता है। योग का सही अर्थ एकता या बांधना को कहते है। इस शब्द की जड़े संस्कृत शब्द प्रियोग जिसका मतलब जुड़ना है। आध्यात्मिक स्तर पर इस जुड़ने का अर्थ व सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का होना। व्यावहारिक स्तर पर, योग शरीर, मन और भावनाओं व आत्मा को संतुलित करने व तालमेल बनाने का साधन है। यह योग या एकता आसन मुद्रा, बँध, षट्कर्म और एलएलके अभ्यास के माध्यम से प्राप्त होती है। तो योग जीने का एक आसान तरीका भी है व अपने आप में परम उद्देश्य भी है। योग करने से हमरी बॉडी एक्टिव हो जाती है।
योग से शरीर में होने वाले फायदे
योग के प्रकार
योग 7 प्रकार के होते हैं-
1.कर्मयोग
2.राजयोग,
3.ज्ञानयोग,
4.हठयोग, ,
5.भक्तियोग
6.लययोग
7. तंत्रयोग
योग से शरीर में होने वाले फायदे yoga in hindi strong immunity
1.कर्म योग।
अच्छे कर्म करना ही कर्म योग है। इसका सही एक उद्येश्य है कर्मों में कुशलता ले आना। यही सहज योग है। व कर्म योग है।
2.राज योग।
राज का अर्थ होता है सम्राट। सम्राट स्व-अधीन होके आत्म विश्वास व आश्वासन से जोडकर कार्य करता है। इसी प्रकार व एक राजयोगी भी स्वायत्त, स्वतंत्र और निर्भय होता । राज-योग आत्मानुशासन व आत्मा अभ्यास का मार्ग है।
राजयोग को अष्टांग-योग भी कहा जाता है। इसलिए इसे आठ-योगों (चरणों) में संगठित के साथ किया जाता है।
इसको आठ भागों में बाटा गया है
3.ज्ञान योग
ज्ञान योग ज्ञान और खुद की जानकारी प्राप्त करने को कहा जाता है। योग स्वम और अपने परिवेश को अनुभव के माध्यम से समझना है | ज्ञान योग के जरिए हमारी आत्मा शुद्ध होती है और हम अपने आप को आत्मा के साथ जोड पाते हैं ।अधिक चिंता लेने वाले व्यक्ति के लिए ज्ञान योग उत्तम रहता lहै। और इसे करने से दिमाग और आत्मा दोनों शांत रहता है । यह योग करने से यादाश्त पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता रहता है । और याददाश्त बहुत तेज बनी रहती है जिससे ज्ञान योग का नाता दिमाग से अहैंधिक रहता है। और इस योग बहुत हार्डली योग माना गया है। ऐसा कहा गया है कि इस योगसन को करने से हम ब्रह्म में लीन हो जाते है । इसलिए इसको ज्ञानयोग कहा गया है।
4.हठ योग
हठयोग को आप समझने व समझाने के लिए 2 प्रकार की परिभाषाओं को उपयोग में लाया गया है। इनमें 1 परिभाषा प्राचीन है और 1 मॉडर्न यानी न्यू है। हम आपको पूरी सरल भाषा दोनों के माध्यम से हठयोग को समझाने की पूरी कोशिश करेंगे जिससे आप को समझ आ जाए ये हठयोग।
हठयोग की प्राचीन परिभाषा को आप इस तरह से समझ सकते है। हठयोग दो शब्दों के साथ मिलकर बना है। इसको ‘ह’ शब्द को सूर्य से जोड़कर देखते है। वहीं ‘ठ’ शब्द को चन्द्र के साथ जोड़ा गया है। इस प्रकार में शरीर में मौजूद चन्द्र (शीतलता का प्रतीक) और सूर्य (ऊर्जा का प्रतीक) और शक्ति को कंट्रोल करने के उद्देश्य से किए जाने वाले योग को हठयोग कहा गया है । इसके माध्यम हमारे शरीर को कई तरह की बीमारियों से बचाने की शक्ति प्राप्त होती है। इसको को हम हठयोग कहते है।
5.भक्ति योग
भक्ति योग का अर्थ है प्रेम और भगवान के प्रति निष्ठा – सृष्टि के प्रति प्रेम और निष्ठा, सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और सम्मान और उनका संरक्षण। हर कोई लोग भक्तियोग का अभ्यास कर सकता है, चाहे बढ़ा हो या छोटा गरीब हो या अमीर, चाहे वह किसी भी देश या धर्म से संबंध रखता हो। भक्तियोग का रास्ता अपने उद्देश्य की ओर सीधा व सुरक्षित पहुंचा है।
भक्तियोग में भगवान किसी भी रूप में आराधना सम्मिलित है। भगवान सब जगह है और रहेगा है। भगवान हमारे चारों ओर निवास करता है। यह ऐसा है जैसे हम भगवान से एक उत्तम धागे के साथ जोडे हों – प्रेम का डोर। भगवान विश्व प्रेम है। प्रेम और भग्वांब अनुकम्पा हमारे चारों तरफ है और हमारे माध्यम से बहती है, क्योकी हम इसके प्रति सचेत नहीं हैं। जिस क्षण यह चेतनता, यह प्रेम अनुभव कर लिया जाता है उसी क्षण से व्यक्ति किसी अन्य वस्तु की चाहना ही नहीं करता। तब हम भगवान प्रेम का सच्चा अर्थ समझ जाते हैं।
भक्तिहीन व्यक्ति एक जलहीन मछली के समान, बिना पंख के पक्षी, बिना चन्द्रमा और तारों के रात्रि के समान है। सभी को प्रेम चाहिये। इसके माध्यम से हम वैसे ही सुरक्षित और सुखी अनुभव करते हैं इसिको हम भक्ति योग कहते है ।
6.लय योग
लय योग एक योग रूप होता है जिसमें स्वयं का विघटन और सर्वोच्च चेतना के मिकर विलय प्राप्त करते है। लया संस्कृत शब्द को कहते है जिसका अर्थ है घुलना। लय योग समाधि की स्थिति की ओर लेकर जाता है , क्योंकि ईश्वर के साथ उच्चतम एकीकरण है। यह मन को अभिव्यक्ति और विघटन की स्थिति से मूल प्रकृति की ओर ले जाता है, जिसका हल मूल स्थिति है।
क्योंकि इसे कुंडलिनी योग भी कहा जा सकता है क्योंकि यह कुंडलिनी शक्ति को उगाता है, लय योग बॉडी के शीर्ष पर सहस्रार (मुकुट चक्र) से कार्य करता है और कुंडलिनी को जगाने के लिए नीचे चक्रों से जाकर बहता रहता है।
7. तंत्र योग
दुर्भाग्य से पश्चिमी देशों और कुछ देशों में तंत्र को इस प्रकार गलत पेश किया जा रहा है कि इसका अर्थ उन्मुक्त सेक्स है। इसका बहुत गलत मतलब निकाला जा रहा है। जिससे ऐसा इसलिए हो रहा है,क्योंकि तंत्र के बारे में ज्यादातर पुस्तकें उन लोगों ने लिखी हैं, जिनका मकसद बस किताबें से अधिक करना है। और अपनी रोजी रोटी कमाना है वे किसी भी अर्थ में तांत्रिक नहीं हैं। तंत्र का शाब्दिक अर्थ होता है तकनीक या टेक्नालाजी। यह ईशान की बहुत जरूरत टेक्नोलोजी यंत्र व तंत्र की विधियां व्यक्तिपरक (सब्जेक्टीव) होती हैं, विषयपरक (ऑब्जेक्टीव) नहीं। लेकिन आज-कल लोगो में यह समझा जा रहा है कि तंत्र शब्द का अर्थ है परंपरा के विरुद्ध या समाज को मंजूर ना होने वाली विधियां। मगर बात बस इतनी है कि तंत्र में कुछ खास पहलुओं का खास तरीकों से इस्तेमाल किया जाता है। यह योग से बिल्कुल अलग नहीं है। दरअसल योग के एक छोटे-से अंग को तंत्र-योग कहा जाता है। इसको लोगो के दिमाग में गलत डाला जा रहा है। हमारे देश में लोग अभी नहीं समझ रहे है कि तंत्र योग क्या है।।